ना शब ए फ़िराक है ना वस्ल ए यार
ना उम्मीद की ही कोई बयार
ना हबीब है ना रकीब है
बनी ज़िंदगी इक सलीब है ।
मैं दुआ भी मांगूं तो किसके दर
है कमाल-ए-शब पे मेरी नज़र
ना दुआ ही दे, ना दवा ही कर
मैं मुरीद हूँ, मुझे प्यार कर
मैं मुरीद हूँ, मुझे प्यार कर ।।
Leave a Comment